मंगलवार, 11 अगस्त 2009

आप भी ममी बन जाइए...

अगर आपको यकीन है कि विज्ञान शीघ्र मौत के रहस्यों को सुलझा लेगा और मर चुके व्यक्तियों को फिर से जिंदा कर देगा, तो अपने शरीर को मरने के बाद सुरक्षित करवा लीजिए। यह मजाक नहीं सच्चाई है। अमरीका में कई ऐसे संगठन हैं, जो मौत के बाद फिर से जी उठने का भरोसा दिलाकर लोगों के शरीर को चोरी छिपे सुरक्षित रख रहे हैं। वे शरीर को तब तक सुरक्षित रखने की गारंटी का दावा करते हैं जब तक मौत से पार पाकर फिर से जिंदा करने की वैज्ञानिक खोज पूरी ना हो जाए। मशहूर शख्सियतों सहित कई लोगों में मृत्यु के बाद शरीर सुरक्षित रखने का सिलसिला चल निकला है, जिसके चलते मशहूर हस्तियां अपने शरीर का पंजीकरण करवा रही हैं। क्या यह ममीज का आधुनिक रूप तो नहीं है? खास नजर-

सोचना भी एक सपना सा लगता है कि क्या एक बार मौत आने के बाद वापस जीवित हो पाएंगे? लेकिन इंसान मौत के रहस्यों को सुलझाने में जुटा है। आप इसे सनक कहें या विज्ञान से उम्मीद कि उसे लगता है कि शायद एक न एक दिन इंसान मौत को मात देगा। इसी यकीन के चलते वो कई तरह की विधियां भी ईजाद कर रहा है। क्रायोनिक्स ऐसी ही विधि है जिसके जरिए मौत के बाद शरीर को बेहद कम तापमान पर तब तक इस आस में सुरक्षित रखा जाता है, जब तक विज्ञान इतना विकसित न हो जाए कि मुर्दों में जान फूं की जा सके। शरीर को सुरक्षित रखने की प्रक्रिया को क्रायोप्रिजर्वेशन कहा जाता है। यानी हो सकता है कि एक दिन आप बहुत गहरी नींद से जागें और पाएं कि दुनिया 200 साल आगे निकल गई है और आप अपने आसपास किसी को भी नहीं जानते या फिर जान भी सकते हैं अगर आपके इष्ट मित्रों ने भी आपके साथ खुद को क्रायोप्रिजव्र्ड करवाया हो।

अगर आप अब भी यह सोच रहे हैं कि यह सब बातें अभी कागजी और फैंटसी की दुनिया में ही हैं, तो आपको बता दें कि जानी-मानी मॉडल और अभिनेत्री पेरिस हिल्टन सहित करीब एक हजार शख्सियतों ने क्रायोप्रिजर्वेशन के लिए पंजीकरण करवा लिया है। करीब 147 लोगों का तो क्रायोप्रिजर्वेशन हो भी चुका है। पेरिस हिल्टन के बारे में एक रोचक बात यह भी है कि वे अकेली नहीं बल्कि अपने कुत्ते के साथ फिर से जिंदा होना चाहती हैं। फिलहाल अमरीका में दो ऐसे संगठन हैं जो आपको मौत के बाद फिर से जी उठने की उम्मीद दे रहे हैं ये हैं मिशिगन के क्लिंटन शहर में स्थित द क्रायोनिक्स इंस्टीट्यूट और एरिजोना के स्कॉट्सडेल शहर में स्थित एल्कॉर।

क्रायोनिक्स के जरिए फिर से जिंदा होने की इच्छा रखने वालों के पास दो तरह के विकल्प होते हैं। पहले विकल्प के अंतर्गत पूरे शरीर को सुरक्षित रखा जा सकता है। दूसरे विकल्प में शरीर से सिर को अलग कर सिर्फ उसे ही सुरक्षित रखा जाता है। इसके पीछे यह सोच होती है कि एक वृद्ध इंसान अपने जर्जर शरीर के साथ फिर से जीना नहीं चाहेगा और जब उसे जिंदा किया जाएगा तो विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली होगी कि उसके दिमाग के लिए एक नया शरीर भी तैयार होगा। जहां तक इन तरीकों में आने वाले खर्च का सवाल है तो एल्कॉर पहले विकल्प के लिए 80 हजार डॉलर और दूसरे विकल्प के लिए 42 हजार डॉलर तक वसूलती है।

इस तकनीक का इस्तेमाल भले ही 1962 से हुआ, लेकिन प्राचीन मिस्र में यह धारणा आम थी कि मरने के बाद शरीर को सुरक्षित रखकर पुनर्जन्म मुमकिन है। वर्ष 1773 में अमरीका के महान विद्वान बैंजामिन फ्रेंकलिन ने भी कहा था कि मरने के बाद शरीर को सुरक्षित रख उसमें प्राण फूंकना विज्ञान के लिए नामुमकिन नहीं। वर्ष 1962 में मिशिगन विश्वविद्यालय के भौतिकशास्त्री रॉबर्ट एटिंगर ने अपनी किताब द प्रॉस्पेक्ट ऑफ इमोर्टेलिटी में इस विधि से फिर से जिंदा होने की कल्पना के वैज्ञानिक प्रमाण दिए थे।

विवाद भी आशाएं भी
क्रायोनिकस के पैरोकार इसके पक्ष में भले ही तमाम दावे करें, लेकिन इस पर विवाद और आपत्तियां उठती रही हैं। कुछ ऐसी वैज्ञानिक बाधाएं हैं, जिनके बारे में कुछ लोगों का कहना है कि उनसे कभी पार नहीं पाया जा सकेगा। मसलन पूरे शरीर को सुरक्षित करने के लिए जिन रसायनों [क्रायोप्रोटेक्टेट कैमिकल्स] का वर्तमान में इस्तेमाल किया जा रहा है उनसे शरीर को अच्छा-खासा नुकसान पहुंचता है। ऐसे लोगों को फिर से जीवित करने के लिए नुकसान की इस प्रक्रिया को पलटने की जरू रत होगी। इसके साथ ही उस बीमारी का इलाज खोजे जाने की भी जरू रत होगी जिससे संबंधित व्यक्ति की मौत हुई थी। उम्मीद की किरण यह है कि विज्ञान उस बिंदु तक तो पहुंच ही गया है, जहां उसने जीवन के स्वरू पों को जमी हुई और स्थिर अवस्था में रखने और फिर बाद में उसे पुनर्जीवित करने के तरीके खोज लिए हैं। मसलन लाल रक्त कोशिकाएं, स्टेम कोशिकाएं, शुक्राणु और अंडाणु को क्रायोबॉयोलॉजी का इस्तेमाल करके ही सुरक्षित रखने का चलन आम हो चुका है। हालांकि यह काफी सरल स्वरू प है और शरीर जैसे बेहद जटिल तंत्र को सुरक्षित रखना अब भी एक चुनौती है।

यूं बनती है आधुनिक ममी
अब यह भी जान लिया जाए कि शरीर को क्रायोप्रिजव्र्ड आखिर किया कैसे जाता है। जैसे ही दिल धड़कना बंद करता है और कानूनी परिभाषा के हिसाब से व्यक्ति की मौत हो जाती है तो शरीर को संरक्षित करने वाली टीम फौरन अपने काम में जुट जाती है। सबसे पहले और मरते ही शरीर को कम तापमान में रखकर दिमाग में पर्याप्त खून भेजने का इंतजाम किया जाता है ताकि दिमाग की कोशिकाएं सलामत रहें। गौरतलब है कि ऑक्सीजन न मिलने से कोशिकाएं मरने लगती हैं और यदि शरीर को तुरंत कम तापमान में रख दिया जाए तो यह प्रक्रिया धीमी हो जाती है। उदाहरण के लिए तापमान में 10 डिग्री कमी लाकर इस प्रक्रिया में लगने वाले समय को दुगुना किया जा सकता है, जिस जगह मौत हुई है वहां से क्रायोप्रिजर्वेशन किए जाने वाली जगह [क्रायोनिक्स फैसिलिटी] तक जाने के सफर में खून के थक्के न बनने लगे इसके लिए इंजेक्शन की मदद से हेपेरिन नामक दवा दी जाती है। शव को क्रायोनिक फैसिलिटी ले जाया जाता है और यहां सबसे पहला काम होता है शरीर में मौजूद 60 फीसदी पानी को बाहर निकालना। यह काम इसलिए किया जाता है कि अगर शरीर को सीधे ही बेहद कम तापमान पर तरल नाइट्रोजन में रख दिया जाएगा तो कोशिकाओं के भीतर पानी जम जाएगा। चूंकि पानी जमने पर आकार में फैल जाता है इसलिए यह कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाएगा। कोशिकाओं से मिलकर ऊतक [टिश्यू] बनते हैं। उतकों से मिलकर अंग और फिर अंगों से क्रायोप्रेटेक्टेट नामक रसायन भर दिए जाते हैं। यह कम तापमान पर जमते नहीं और इसलिए कोशिका उसी अवस्था में सुरक्षित रहती है। इस प्रक्रिया को विट्रीफिकेशन कहा जाता है। इसके बाद शरीर को बर्फ की मदद से -130 डिग्री तापमान तक ठंडा किया जाता है। अगला कदम होता है शरीर को तरल नाइट्रोजन से भरे एक टैंक में रखना। यहां तापमान -196 डिग्री रखा जाता है। इसके बाद कुछ रह जाता है तो सिर्फ जीवित होने का अनिश्चित इंतजार।
150 सेलेब्रिटीज कतार में
क्रायोप्रिजव्र्ड सेलिब्रिटीज की बात की जाए तो पेरिस हिल्टन के अलावा अमरीका के प्रसिद्ध बेसबॉल खिलाड़ी टेड विलियम्स का नाम प्रमुख है, जिनका निधन 2002 में हुआ था। मौत के बाद उनके बेटे जॉन हैनरी ने घोषणा की थी कि उनके शरीर को दफनाया नहीं जाएगा, बल्कि उसे एरिजोना में क्रायोप्रिजर्वेशन के लिए भेजा जाएगा। अफवाह यह भी रही कि वाल्ट डिज्नी के शरीर को भी क्रायोप्रिजव्र्ड किया गया, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हुई। सेंटर मालिकों पर नाम जाहिर करने पर पाबंदी है, लिहाजा वे जल्दी से पंजीकृत सेलेब्रिटीज का नाम नहीं बताते। बावजूद इसके माना जा रहा है कि अलग-अलग क्रायोनिक्स सेंटरों में दुनिया भर की करीब 150 सेलेब्रिटीज अपना नाम पंजीकृत करवा चुके हैं। अमरीका में क्रायोनिक्स के खासे चर्चे हैं। जिसके चलते अमरीकन राष्ट्रपति के दावेदार जॉन मैक्केन ने भी अपने शहर में एक क्रायनिक्स सेंटर खोला है।

क्रायोनिक्स बना बिजनेस
ग्रीक भाषा से लिया हुआ क्रायोनिक शब्द का अर्थ है ठंडा। शरीर को इतने कम तापमान पर रखा जाए कि यह सैकड़ों साल तक सुरक्षित रहे। कहने वाल इसे पैसा कमाने की नई तरकीब भी कहते हैं। उनमें से कुछ का कहना है, वह दिन आएगा, जब आएगा लेकिन उससे पहले तो बेवजह पैसा बनाया ही जा रहा है। क्रायोनिक्स एक बिजनेस बन गया है, जिसके जरिए होशियार लोग खासा पैसा कमा रहे हैं। अमरीकन बीमा कंपनियां पैसा कमाने में कहीं पीछे नहीं हैं। इन दिनों बीमा कंपनियां क्रायोनिक्स को आधार बनाकर पॉलीसियां बेच रही हैं। उनका कहना है कि अगर किसी शख्स ने जीवन बीमा कराया है तो उसके मरने के बाद मिलने वाला पैसा उसे क्रायोप्रिजव्र्ड रखने में काम आ सकता है। यानी एक गरीब इंसान भी अपने शरीर को क्रायोप्रिजव्र्ड करा सकता है, क्योंकि बीमा पॉलिसी का प्रीमियम केबल टेलीविजन के खर्च से भी कम है।

धार्मिक भावनाओं के खिलाफ

यह तकनीक भले ही विज्ञान की सफलता मानी जाए, लेकिन आत्मा-परमात्मा और पुनर्जन्म के सिद्धांत की घोर अवहेलना करती है। लेकिन क्रायोनिक्स के पैरोकार अलग ही तर्क देते हैं। उनका कहना है कि जब किसी शरीर को क्रायोप्रिजव्र्ड किया जाता है, तो आत्मा के इधर-उधर भटकने का सवाल ही नहीं उठता। उनका तर्क है कि जब हम सोते हैं तो हमारी आत्मा कहां जाती है? जब किसी मरीज को बेहोशी का इंजेक्शन लगाया जाता है, या उसका शरीर कोमा में होता है, तो उसकी आत्मा कहां जाती है? इसी तरह से क्रायोप्रिजव्र्ड शरीर की आत्मा भी उसी के साथ होती है।

क्रायोनिक्स पर पुस्तकें
1962- द प्रॉस्पेक्ट्स ऑफ इमोर्टेलिटी- रॉबर्ट एटिंगर
पुस्तक में क्रायोनिक्स के विचार के साथ इसके सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू की बात की गई है।
1986- एंजिन्स ऑफ क्रिएशन- के. इरिक ड्रेक्सलर
पुस्तक में नैनोटेक्नोलॉजी के भविष्य के साथ ऐसी मोलेक्यूलर स्केल मशीन का जिक्र है, जो बुढ़ापे के समय खराब होने वाले ऊतकों की मरम्मत कर सकती है। इससे न केवल बुढ़ापे को टाला जा सकता है, बल्कि क्रायोप्रिजर्वेशन के दौरान शरीर को होने वाले नुकसान की भरपाई भी की जा सकती है।
1998- द फस्र्ट इमोर्टल - जेम्स हाल्पेरिन
हालांकि यह एक उपन्यास है, लेकिन इसमें क्रायोनिक्स के सिद्धांतों और अनुप्रयोगों का विस्तार से वर्णन है।
2004- द साइंटिफिक कंक्वेस्ट ऑफ डेथ-
पुस्तक में क्रायोनिक्स और अमरता के दूसरे तरीकों पर आधारित प्रयोगों को निबंध के रूप में दिया गया है।
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