शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

हुस्नकार फिदा हुसैन

हुस्न के असली कद्रदान और कला के पारखी हुसैन दद्दू को मेरा दंडवत प्रणाम। दद्दू कमाल का जिगरा है आपका, इस उम्र में जहां लोग दुनिया से विदा हो जाते हैं, वहीं आप हैं कि फिदा पे फिदा हुए जा रहे हैं। फिल्म इंडस्ट्री की शायद ही कोई खूबसूरत हीरोइन होगी, जो आपके 'कलात्मक नजरिए से बच पाई हो। मुमताज से लेकर माधुरी फिर तब्बू में आपको ऐसा सौंदर्य नजर आया कि पूरे देश के बुड्ढ़ अपना आदर्श मानकर आपकी प्रतिमा बनाने की भी मांग करने लगें तो ताज्जुब मत करना। यदि अपन देश के प्रधानमंत्री होते तो आपकी काबिलियत के अनुसार शर्तिया आपको महिला विकास मंत्रालय का ब्रांड एंबेसेडर बना देते।

अपन को तो लगता है कि आपका जन्म महिलाओं के उत्थान के लिए ही हुआ है। .. और आप उस पर पूरी तरह खरे भी उतर रहे हैं। क्या-क्या नहीं किया आपने महिलाओं के लिए? महिलाओं के अंग-प्रत्यंगों पर आपकी सबसे ज्यादा कूंची चली। जितनी भी पकाऊ फिल्में बनाई सबके टाइटल महिला नामों पर ही रखे। सौंदर्य बोध भी आपको केवल सिने-तारिकाओं में ही नजर आया। कभी सिक्स एब्स पैक, ऐट एब्स पैक वाले हीरो फूटी आंख भी पसंद नहीं आए। आपको तो लोग 'इश्क का देवताÓ भी कहें तो भी कम होगा। लोगों के मुंह से अक्सर सुना करते थे कि बुझता दिया एक बार फडफ़ड़ता जरूर है लेकिन आप तो एक बार नहीं कई बार फडफ़ड़ाते नजर आए।

आपकी तारीफ में कशीदे काढऩा अपन के बूते से तो बाहर है, फिर भी गुस्ताखी करने की गुस्ताखी कर रहा हूं। पहली बार माधुरी से आंखें लड़ीं, तो ऐसी लड़ीं कि 'हम आपके हैं कौन को लाठी के सहारे ही सही, सौ से ज्यादा बार देख आए। फडफ़ड़ाहट कम नहीं हुई तो उन्हें सौंदर्य की देवी बनाकर पेंटिंग बना डाली। इतने से भी जी नहीं भरा तो 'गजगामिनी नाम से जानलेऊ फिल्म तक बना दी। वह अलग बात थी कि फिल्म न तो माधुरी के समझ आई, न दर्शकों के और न ही खुद आपके, लेकिन इससे आपको क्या। इस बहाने आपको माधुरी का सान्निध्य तो मिल ही गया। अब माधुरी ने पूरी जिंदगी साथ निभाने का तो ठेका ले नहीं रखा था, एक दिन डॉक्टर नेने आए और उन्हें ले उड़े। ऐसे में कोई और होता तो दिल टूटता लेकिन आपका दिल तो...खुदा खैर करे। कई सालों के घनघोर प्रयासों के बाद आपका दिल फिर धड़का। लेकिन ऐसी हीरोइन के लिए धड़का, जिसने शायद शादी न करने की कसम खा रखी हो। फिर भी आपने अपना काम चलाया। तब्बू को कुछ हुआ हो या नहीं लेकिन आप एक बार फिर प्यार के सागर में डूब गए। और तो कुछ होना नहीं था, बस 'मीनाक्षी के नाम से एक और सदमा देने वाली फिल्म वितरकों के गले पड़ी।

इस बार तो आपकी आशिकमिजाजी की दाद देनी पड़ेगी। इस बार आपने खुद से काफी कम उम्र की हीरोइन अमृता को पकड़कर दूरदर्शिता दिखाई है। कम से कम औरों की तरह उसकी पांच-दस साल में शादी-वादी का तो चक्कर नहीं होगा। अमृता के ह़ुस्न की तारीफ में आपने फरमाया कि वे खुदा की बनाई हुई परफेक्ट पेंटिंग हैं। उनकी बॉडी लैंग्वेज इस कदर खूबसूरत है कि उसे बस कैनवास पर ही कैप्चर किया जा सकता है। लेकिन दद्दू छोटा मुंह बड़ी बात, जहां तक मुझे ध्यान है, कुछ ऐसी ही बातें आपने माधुरी दीक्षित को देखकर भी कही थीं। यानी आप हर नए हुस्न को देखकर अपनी कला के मापदंडों में फेरबदल करते रहते हैं, मुबारक हो। हालांकि अब लोग आपको कलाकार की जगह हुस्नकार और बुजुर्ग लवर के नाम से जानने लगे हैं। मुमकिन है आपके इस इश्कमिजाजी कॅरियर के लिए आपको लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड भी दे दिया जाए। मगर दद्दू घबराना नहीं, जो है नाम वाला वही तो बदनाम है।

9 टिप्‍पणियां:

  1. हुस्न जानलेवा होता है व्यास जी। अब बेचारे दद्दू (हुसैन) भी क्या करें? फिसल गए। आप होते आप भी फिसल जाते। हमे होते हम भी फिसल जाते। आखिर मामला माधुरी, तब्बू और अमृता का मामला था। गोरी मेम देखकर दद्दू काबू नहीं रख सके भावनाओं पर। ...पर लो आपका भी जवाब नहीं! आपने भी गुत्थी गुथ थी जनाब।
    बहुत सुंदर व्यंग्य। मजा आ गया!

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  2. किया भी क्या जा सकता है। ये तो उन बेशर्मो मे से है जिन्हे हर कोई पसंद आ जाता है, इनका बस चलता तो ये कभी बूढे ही ना होते।

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  3. Bahut Accha, Isi tarah likhte rahiye.

    Rajasthan Patrika Se Mera Bhi Judav Raha hai.

    Dharmik Article Mene bhi bahut likhe hai patrika ke pali, jalore, sirohi Addition me.

    Magar Chhaye to aap rahte hai Magzine me.

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  4. आते ही छा गये।

    हिन्दी चिट्ठाकारी में स्वागत है।

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