बुधवार, 26 अगस्त 2009

वक्त की कीमत पहचानो दोस्तो
मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर उन चुनींदा लोगों में से हैं, जो निजी जिंदगी के बारे में बहुत कम बोलते हैं। पिछले दिनों उनके एक वक्तव्य ने मुझे इतना प्रभावित किया मैं खुद को लिखने से रोक नहीं पाया। सचिन एक इंटरव्यू में बोले कि उनकी जिंदगी के शुरुआती सालों में ऐसे कई मौके आए, जब उन्हें लगा कि वे बहक सकते हैं। उन्हें लगा कि अभ्यास छोड़ उन्हें दोस्तों के साथ मस्ती करनी चाहिए, फिल्में देखनी चाहिए। अपनी युवावस्था को एंजॉय करना चाहिए। कुछ ऐसा ही बैडमिंटन सनसनी सायना नेहवाल के बारे में उनके पिता ने बताया। उन्होंने बताया,'सायना की खाने-खेलने की उम्र है, वह भी चाहती तो आम लड़के- लड़कियों की तरह मस्ती भरी जिंदगी जी सकती थी। आपको ताज्जुब होगा कि उसे अपने रिश्तेदारों के गए, टीवी, सिनेमा देखे, शादी-ब्याह, पिकनिक में गए सालों हो गए। इन दोनों हस्तियों में अगर कोई एक बात कॉमन है, तो वह है इनका वक्त की कीमत पहचानना। ऐसा नहीं कि सचिन और सायना को दुनिया के ग्लैमर और चकाचौंध ने अपनी ओर नहीं खींचा होगा, लेकिन उन्होंने अपनी भावनाओं को काबू में रखकर वक्त की कीमत पहचानी और कड़ी मेहनत के दम पर इस मुकाम तक पहुंचे। संघर्ष के दिनों में अगर वे फिसल जाते, तो शायद आज हम और आप उनकी बातें नहीं कर रहे होते।
दोस्तो, हर इंसान की जिंदगी में एक ऐसा दौर आता है, जब बाहरी दुनिया की हर चीज उसे अपनी ओर खींचती हैं। दोस्त, फिल्में, लड़के-लड़कियां, मौज-मस्ती, पहनना-खाना-पीना सबकुछ। जो लोग इस चुंबकीय आकर्षण से खुद को बचा नहीं पाते, या फिर जिनका ध्यान उम्र के इस नाजुक दौर में भटक जाता है, वे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते रहते हैं। लेकिन जो अपनी भावनाओं पर काबू रखकर वक्त की नजाकत पहचानता है वो आज लोगों के लिए मिसाल बने हुए हैं। राजस्थान के सबसे कम उम्र (28 साल) के कलक्टर जोगाराम इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। उनके मुताबिक,'कामयाब लोग कोई अलग नहीं होते। आप और हममें से ही होते हैं। लेकिन उनमें गजब की विल पावर होता है, कुछ कर गुजरने की इतनी सनक होती है कि लेकिन उन्हें ऐसे आकर्षण छू भी नहीं पाते। मेरा मानना है कि आप जिस चीज के पीछे भागोगे उतनी ही वह आपसे दूर होती जाएगी और जिस चीज ही आप उपेक्षा करोगे वह उतनी ही आपके करीब आती चली जाएगी। मैं कभी किसी चीज के पीछे नहीं भागा तो आज सब चीजें मेरे पीछे हैं। यह सिद्घांत केवल करियर में ही नहीं बल्कि जिंदगी के हर क्षेत्र में लागू होता है।
इंसान जितना वक्त को अहमियत देता है, वक्त भी उसे उतना ही निहाल करता है। आज कोई अध्यापक है, तो समझिए उसने पढ़ाई के लिए इतना ही वक्त दिया कि वह यहां तक पहुंच पाया। या कोई इंजीनियर है तो बेशक उसने अध्यापक से ज्यादा वक्त दिया होगा। या फिर कोई चपरासी है, तो उसने अध्यापक से भी कम वक्त को जाना होगा और अगर कोई कलक्टर बना होगा तो उसने सबसे वक्त की कीमत जानी होगी। मतलब है कि जो जितना बोएगा उतना ही पाएगा। ऐसे ढेरों उदाहरण आपने भी अपने इर्द-गिर्द देखे हैं, जिनमें लड़के गलत संगत में पड़कर एक अलग जिंदगी जीते हैं। चौराहों पर बैठना, नशे करना, बात-बात पर लडऩा-झगडऩा उनकी आदत में शुमार होता है। वह वक्त होता है करियर बनाने का लेकिन वे वक्त को याद नहीं रखते तो एक समय के बाद वक्त भी उन्हें भुला देता है और वे केवल रोड इंस्पेक्टरी के अलावा कुछ नहीं कर पाते।
दोस्तो, इसे आप मेरा भाषण कतई नहीं समझें। पिछले कुछ सालों में मुझे दर्जनों संघर्षशील आईएएस, आईआईटीयंस और बिजनेसमैनों के साक्षात्कार लेने का मौका मिला। सबने सफलता के अलग-अलग सूत्र बताए। लेकिन सबकी कामयाबी का एक ही राज था वह था वक्त की इज्जत करना, किसी भी स्तर पर वक्त बरबाद नहीं करना। मित्रो, सफलता रातोंरात नहीं मिलती, एक लंबी साधना होती है, जिसमें वक्त की पूजा होती है। एक दौर गुजरने के बाद एक-एक मिनट आपसे संवाद करेगी और कहेगी कि मैने हर शख्स को कुछ कर गुजरने का मौका दिया। जिसने मेरी कद्र पहचानी वह अर्श पर है और जो सबकुछ जानकर भी अनजान बना रहा वह फर्श पर है। अब आप खुद ही देख लें कि आप खुद को कहां देखना चाहेंगे?

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