अजी सुनते हो, माधुरी '36:24:36 में नजर आएगी। श्रीमती किचन में दाल में तड़का लगाते हुए बोली। अपन का माथा ठनका कि आज सुबह-सुबह श्रीमती को क्या सूझी, जो साग-सब्जी को छोड़ धक-धक गर्ल की बात कर अपन का दिल धड़का रही है। उसकी बातों को हवा में लेते हुए अपन बोले,'भाग्यवान, माधुरी दो बच्चों की अम्मा बन चुकी है, अब यह संभव नहीं है। पत्नी बड़बड़ाते हुए बोली,'बुरा दिमाग हमेशा बुरा ही सोचता है। मैं माधुरी के फिगर की बात नहीं कर रही। उसकी आने वाली फिल्म की बात कर रही हूं।
अपन कुछ और बोलते कि इससे पहले वह बोली,'आजकल के फिल्मकारों का दिमाग क्या भांग खाने गया है? फिल्मों के ऐसे ऊल-जुलूल नाम रखने लगे हैं कि फिल्में देखना तो दूर नाम सुनकर ही अच्छा-भला आदमी चमक जाए। पहले की फिल्मों के नाम में ही इतनी तहजीब हुआ करती थी कि दिल गार्डन-गार्डन हो जाता था। आज की कई फिल्मों का नाम लेना ही गाली देने जैसा हो गया है। 'कमीने, 'पापी, 'पापात्मा, 'जहरीले,'हत्यारा क्या हैं ये सब? पिक्चर बनाने वालों के पास शब्दों का अकाल पड़ गया कि दिमाग की बैटरियां फुंक गई, जो इतने घटियापन पर उतर गए हैं।
पहले की फिल्मों का टाइटल देखकर हम जैसे अज्ञानी लोग बिना पिक्चर देखे उसकी कहानी का अंदाजा लगा लिया करते थे, लेकिन आज उसी ढर्रे पर चलें, तो अर्थ का अनर्थ हो जाए। पिछले दिनों एक फिल्म आई 'गरम मसाला। नाम देखकर लगा कि कोई मसाले वाली पर कोई आर्ट मूवी होगी। लेकिन असलियत कुछ और ही निकली। 'मनी है तो हनी है मतलब 'पैसे हैं तो शहद है या 'चाइना टाउन फिल्म में न चाइना है न टाउन, अरे, कोई सिर-पूंछ का कॉम्बीनेशन तो बिठाओ। ये क्या, जो मर्जी आया वही नाम रख दिया। मेरा तो सिर धुनने को मन करता है। थोड़े दिनों पहले फिल्म आई 'मेरे बाप पहले आप अरे, नासमझो, इसमें बताने की क्या जरूरत है। बाप तो बेटे से हमेशा ही आगे ही रहता है। अब फिल्म आ रही है,'अगली और पगली देखना है उसमें पागलों को भी कोई रोल मिल रहा है क्या?
मुझे तो लगता नहीं कि हिंदुस्तानी फिल्मकारों ने ऐसी कोई चीज छोड़ी हो, जिस पर फिल्म का नाम नहीं हो। सोचो जरा, रोटी, कोयला, माचिस, राख, शमशान, जिंदा, मुर्दा, नमक, चीनी से लेकर आकाश, पाताल, टैक्सी, ट्रेन, आग, पानी, शरीर, आत्मा, पुण्य, पाप, भगवान, शैतान तक के नाम पर फिल्में बना दी। कुछ अब बचे हैं, तो केवल जूते, चप्पल, शर्ट, पेंट, नाक, कान, अंगुली, पैर, बाल जैसे शब्द। हो सकता है कोई 'क्रिएटिव फिल्मकार इन पर भी अपना हुनर दिखा दे। फिल्म बनाने वालों से पूछो, तो कहते हैं कि हमारे टाइटल 'कुछ हटकर होते हैं। अरे भलेमानुषो, इस हटकर देने के चक्कर में इतना तो मत हटो कि खुद का हटवाड़ा निकल जाए। श्रीमती के श्रीमुख से बॉलीवुड फिल्मकारों की विद्वतापूर्ण पोस्टमार्टम देख अपन भी खिसक लिए, क्योंकि पता है एक बार यह रेडियो शुरू होने के कई घंटों बाद तक बिना लाइट सर्विस देता है।
शनिवार, 8 अगस्त 2009
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